अनकहे एहसास
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अनकहे एहसास

Updated: May 10, 2021

कहानी (भाग 1)

मैं बयां नहीं कर सकता अपनी उस दिन की बेबसी को, जब मैं अपने ही शरीर में क़ैद था। मुझे तेज़ी से हॉस्पिटल के कॉरीडोर में एक व्हीलचेयर पर स्ट्रैप करके आइसीयू की तरफ ले जाया जा रहा था, मेरी गर्दन एक ओर झुकी हुई थी और मेरे आंसू रुक नही रहे थे। आखिर मैने अपनी पत्नी सपना और अपनी आठ साल की बेटी एलिया के खून से लथपथ मृत शरीरों को अपनी आंखो से जो देखा था। ये देखने के पहले मैं अंधा क्यों नहीं हो गया था या मैं भी क्यूं नहीं मर गया। मन कर रहा था कि मैं चीख चीख कर रोऊं, भाग कर अपनी एलिया के पास पहुंच जाऊं , पर मैं तो हिल भी नहीं पा रहा था। सब कुछ तो ख़त्म हो चुका था मुझमें फिर क्या और क्यों मुझमें जीवित था। अभी थोड़ी देर पहले तक तो सब कुछ रोज़ जैसा था ।


हर दिन की तरह मै उस दिन भी शाम को सात बजे ऑफ़िस से घर लौटा था और ज़्यादातर दिनों की तरह ही किसी बात पर मेरी और सपना की बहस हुई थी। अब मुझे एहसास होता है कि जो बातें मुझे मामूली लगती थीं वो शायद सपना के लिए बहुत मायने रखती थीं। जो मैं तब कभी समझ नहीं पाया। ख़ैर, माहौल को हल्का करने के लिए उस दिन मैं सपना और एलिया को आइसक्रीम खिलाने ले गया, जो शायद मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी भूल थी क्योंकि उसी वजह से मुझे मेरी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा दर्द मिला था।

हम लोग आइसक्रीम खा कर घर लौट रहे थे, एलिया, खिलखिला कर हंसते हंसते अपने स्कूल की सारी बातें बता रही थी। उसकी हंसी के बीच की बाते तो मुझे खास समझमे नहीं आ रही थीं, पर उसकी आवाज़ की मासूमियत और चहरे के भोलेपन में मैं अपनी सारे दिन की थकान, अपनी मां और सपना की मुझसे शिकायतें, सब भूल गया। गाड़ी में रेडियो पर मेरा फेवरेट गाना ' आने वाला पल जाने वाला है ' बज रहा था। कितना सुकून का पल था वो! सपना भी शांत बैठी गाड़ी की खिड़की से बाहर शहर की खूबसूरती या शायद खामोशी देख रही थी।

अचानक, पता नहीं कहां से सामने से एक गाड़ी मेरी गाड़ी की तरफ़ तेज़ी से आ गई, मैंने अनान फानन में पूरी ताकत से स्टेरिंग को घुमाया और कस कर ब्रेक दबाया पर तब तक देर हो चुकी थी, हम उस गाड़ी से ज़ोर से टकरा गए। अगले पल क्या हुआ मुझे याद नहीं, जब होश आया तो तीन चार लोगों को मैंने ऊपर से अपनी ओर ताकते हुए देखा। वो मिलकर मुझे स्ट्रेचर पर रख रहे थे।

मैंने उठने की कोशिश की पर मैं हिल भी नहीं पाया, मुझे कहीं कोई एहसास भी नहीं हो रहा था। एम्बुलेंस के साईरेन की कर्कश आवाज मेरे कानों को चीर रही थी। मुझे तभी ही सपना और एलिया का खयाल आया, उतने में मैंने किसी को कहते सुना " मां बेटी दोनों ही ख़तम हो गईं" । उफ़! किस निर्ममता से वो ये बात कह गया, और मैंने अपनी ज़िंदगी के सबसे बड़े डर का एहसास ज़रूर कर लिया।

"नहीं...नहीं, ये नहीं हो सकता, ये ज़रूर किसी और के बारे में बात कर रहे होंगे, दूसरी गाड़ी के लोगों के बारे में बोल रहे होंगे, मेरी एलिया को कुछ नहीं हो सकता", मैंने मन में सोचा।

मैंने कुछ बोलने की कोशिश की पर मैं तो उसमें भी असक्षम था। उतने में मेरी निगाहें सड़क पर पड़े दो स्ट्रेचरों पर पड़ी एक में मेरी फूल सी बेटी एलिया खून में लथपथ निर्जिव लेटी थी और दूसरे पर सपना। मैंने अपनी आंखे बंद करली। खयाल आया कि मैं अंधा क्यों नहीं हो गया या मैं भी मर क्यों नहीं गया, भगवान ने मुझे क्यों छोड़ दिया, कैसे जियूंगा अपनी एलिया के बिना, मेरी पूरी दुनिया तो खत्म हो गई थी। उफ़! ये दिन किसी की जिंदगी में न आए।


मुझे उसी हालत में व्हीलचेयर पर धकेलते हुए हॉस्पिटल के कॉरीडोर से ले जाया जा रहा था , सामने काउंटर पे मैंने अपनी मां को देखा , वे फूट फूट कर रो रही थीं साथ ही कोई फॉर्म भर रही थीं। हॉस्पिटल वाले कुछ देर तो उन्हें इन औपचारिकताओं से बख्श देते। उनको इस हालत में देख कर मन हुआ कि मैं उनसे लिपट कर रोऊं, उनके आंचल से अपने आंसू पोछूं, पर मैं असहाए अपनी गर्दन लटकाए उन्हें देखता रहा। सोच रहा था कि जैसे बचपन में मां मेरी हर परेशानी दूर कर देती थी काश वो आज भी कर दें, सब कुछ मेरी ज़िन्दगी में ठीक कर दें। बचपन के बाद आज कई सालों में मुझे अपनी मां की एहमियत दोबारा महसूस हो रही थी। वो अपने दुख में इतना डूबी हुई थीं और फॉर्म भरने में व्यस्त थीं कि उनको पता ही नहीं चला कि कब मैं उनके पास से हो कर गुज़र चुका हूं।


पर...पर काउंटर से थोड़ी ही दूरी पर ये कौन खड़ी थी, नीली साड़ी में? क्या ये छवी थी? "अरे नहीं, छवी कैसे हो सकती है, ज़रूर उसकी तरह दिखने वाली कोई और होगी। पर वही हाइट, वही नैन नक्ष...आज अचानक इतने सालों के बाद"?

मैं उसकी एक झलक ही देख पाया था कि मुझे तेज़ी से आगे बढ़ा दिया गया। मुड़ कर देखने की इच्छा तो हुई पर मुड़ता भी तो कैसे। सोचने लगा "वो यहां क्या कर रही होगी, डॉक्टर तो हो नहीं सकती, क्या किसी से मिलने आई है?", दिखने में तो किसी उच्च पद की अधिकारी लग रही थी। पता नहीं कब इन्हीं खयालों में खोए हुए , अपने वर्तमान के दुख को भूल पहुंच गया 15 साल पहले जब हमारे कॉलेेज का आखिरी दिन था, हमारी बैच पार्टी चल रही थी और मेरी आंखे सिर्फ उसी को ढूंढ रही थी... सपना को।

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